गरियाबंद
श्रीराम ने लोमस ऋषि आश्रम में बिताया वनवास।
छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहे जाने वाले राजिम का श्रीराम के 14 साल के वनवास काल से गहरा नाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने यहां के लोमस ऋषि आश्रम में कुछ समय बिताया था। कुलेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना माता सीता ने की थी। जो दुनिया का पहला पंचमुखी शिवलिंग है।
श्रीराम ने कुलेश्वर महादेव की पूजा अपने कुल देवता के रूप में की थी। यहां मौजूद भगवान श्री राजीव लोचन और कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर का अपना अलग ही इतिहास है जो लोगों की आस्था का केंद्र है।
राजिम में त्रिवेणी संगम पर कुम्भ का आयोजन होता है।
त्रिवेणी संगम में सीता ने रेत से बनाया शिवलिंग
राजिम की पहचान आस्था, धर्म और संस्कृति नगरी के तौर पर है। कहा जाता है कि माता सीता ने त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की थी। उन्होंने अपने कुल के आराध्य देव की आराधना की थी, इसलिए इस शिवलिंग का नाम कुलेश्वरनाथ महादेव पड़ा।
देवी सीता ने त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद बालू से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की थी।
नदी में बना है भव्य मंदिर
नदी में ही विशाल मंदिर का निर्माण किया गया है। 17 फीट ऊंची जगती तल पर मंदिर को आकार दिया गया है। मंदिर परिसर में पीपल का वृक्ष है। यहां दो गर्भ गृह हैं। एक में भगवान कृष्णनाथ महादेव का शिवलिंग है। दूसरे में देवी दुर्गा विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण छठवीं शताब्दी में माना गया है।
राजिम में नदी के बीच स्थित कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर।
दूध धारा प्रवाहित होते ही शिवलिंग ने पंचमुखी आकार लिया
कुलेश्वर महादेव मंदिर के संचालक चंद्रभान और पुजारी पाटेश्वर नाथ के मुताबिक कहा जाता है कि यहीं वनवास के समय माता सीता ने जब शिवलिंग पर दूध की धारा प्रवाहित की, तो उस स्थान पर चार और शिवलिंगों ने आकार ले लिया।
लोमश आश्रम से सटा हुआ है कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर।
नदी तट पर लोमस ऋषि का आश्रम मौजूद
समय के साथ-साथ कई प्राचीन स्थलों का अस्तित्व समाप्त हो गया, लेकिन संगम तट पर आज भी लोमस ऋषि का आश्रम है। पहले यहां बहुत से बेल के पेड़ मौजूद थे। आश्रम के बीच में लोमस ऋषि का मंदिर बना हुआ है, जिसमें ऋषि की प्रतिमा प्रस्थापित है।
राजिम में नदी तट पर लोमस ऋषि आश्रम।
कुलेश्वर मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
राजिम के कुलेश्वर मंदिर से जुड़ी हुई एक कथा है, जिसमें ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड के निर्माण के समय भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल के पत्ते पृथ्वी पर गिरे। जहां ये पत्ते गिरे वह क्षेत्र पद्म या कमल क्षेत्र में बदल गए। राजिम का कुलेश्वर मंदिर इन सभी क्षेत्रों का केंद्र बना।
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