करैरा। स्वच्छता को लेकर केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। पंचायत स्तर पर जगह-जगह सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनाए गए हैं। इसके पीछे सोच यह है कि खुले में शौच से मुक्ति मिल सके और अधिक से अधिक गांवों को ओडीएफ प्लस की श्रेणी में लाया जा सके। लेकिन सरकारी दफ्तरों में बैठे अधिकारी शासन की इस सोच को पूरा करने में रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहे हं। करैरा जनपद पंचायत में सामुदायिक स्वच्छता परिसर बने करीब 8 माह का समय बीत गया और इनके सीसी भी जारी हो गए। लेकिन हालात यह है कि अभी भी इन पर ताले ही लटके हुए हैं। यह अधिकारियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया ही है कि परिसर के तैयार होने के महीनों बाद भी यह चालू नहीं हो पाए हैं। इससे उन ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ता है जिनके घरों में अब शौचालय नहीं बन पाए हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी सुबह-शाम महिला और पुरुष हाथ में लोटा लिए खुले में शौच के लिए जाते हैं। यदि यह चालू हो जाते तो शायद ग्रामीणों को खुले में शौच के लिए जाकर शर्मिंदा नहीं होना पड़ता।
करैरा जनपद की 17 पंचायतों में सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनकर तैयार हैं। इस परिसर में महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग शौचालय बनवाए गए हैं, लेकिन इन पर ताला लगा हुआ है। यह अभी शुरू नहीं हो पाए हैं और अधिकारियों ने 25 और नए परिसर स्वीकृत करा लिए हैं। इसमें से 12 के लिए राशि भी स्वीकृत की जा चुकी है। अब फिर से यह परिसर बन जाएंगे। अधिकारी और ठेकेदार मिलकर कमीशन खाएंगे, लेकिन आमजन को कब इसका लाभ मिलेगा इसका कोई भरोसा नहीं है। जो स्वच्छता केंद्र बने हैं उनमें अभी पानी की व्यवस्था भी नहीं हो पाई है।
इनका कहना है
केवल राशि खर्च करने के लिए ही करैरा में सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनाए जा रहे हैं ताकि कमीशन का खेल चलता रहे। यदि यह कहा जाए तो गलत नही होगा क्योंकि जब 17 परिसर 8 महीने बाद भी शुरू नही हो सके उसके बाद 25 और स्वीकृत कर दिए गए तो इसका मतलब तो यही है की स्वच्छता हो या न हो राशि नही साफ होना चाहिए। जनपद के जिम्मेदार सीईओ इस पर गौर क्यों नही करते हैं यह सोचने वाली बात है।
शेखर शर्मा, समन्वयक स्वच्छ भारत मिशन
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