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MP में रोजाना बच रहा 7 लाख लीटर दूध, इस्तेमाल की कोई योजना नहीं,


इंदौर। प्रदेश में उपभोक्ताओं के उपयोग के बाद रोजाना करीब 7 लाख लीटर दूध बच रहा है। मप्र स्टेट कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन इस बचे हुए दूध का क्या करे, उसके लिए मुश्किल खड़ी हो गई है। दूध उत्पादन में तो मध्यप्रदेश देश में तीसरा बड़ा राज्य बन गया, लेकिन इस बढ़े हुए दूध को संभालने की यहां कोई योजना नहीं है।फेडरेशन के पास केवल 2.50 लाख लीटर दूध का पावडर बनाने की क्षमता है। ऐसे में बचा हुआ करीब 4.50 लाख लीटर दूध प्रदेश सहित राजस्थान के निजी प्लांटों पर भेजकर पावडर बनवाया जा रहा है। प्रदेश में इस साल जैसी मुश्किल कभी नहीं आई।
डेढ़-दो महीने तक ऐसे ही हालात रहे तो फेडरेशन 40-50 करोड़ के घाटे में उतर सकता है। डेयरी सेक्टर से जुड़े अफसरों का मानना है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेयरी उत्पाद के रेट गिरने से निजी क्षेत्र ने दूध उत्पादक किसानों का दूध लेने से हाथ खींच लिए हैं।लिहाजा सारा दूध सहकारी सेक्टर के प्लांटों की ओर मुड़ गया है। नेशनल को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष और मप्र दुग्ध महासंघ के पूर्व एमडी सुभाष मांडगे कहते हैं दूध उत्पादन बढ़ाने से पहले इतने दूध को संभालने के लिए फेडरेशन ने कोई प्लानिंग नहीं की। महासंघ को अपने पावडर प्लांट बढ़ाना था, लेकिन इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। अमूल की तरह सांची के उत्पाद बेचने के लिए कभी वैसी मार्केटिंग नहीं की गई।
गोवंश में मध्यप्रदेश देश में नंबर वन
मध्यप्रदेश के दूध उत्पादक गुजरात, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान से गिर साहीवाल नस्ल की गायें भी लाकर पाल रहे हैं। यही कारण है कि गोवंश पालने में मध्यप्रदेश देश में नंबर एक पर पहुंच चुका है। इस समय प्रदेश में 196 लाख गोवंश हैं। साथ ही 81 लाख भैंसवंश है। पशु चिकित्सा विभाग के डायरेक्टर डॉ. आरके रोकड़े बताते हैं प्रदेश में भैंसों की संख्या जरूर अन्य राज्यों से कम हैं, लेकिन जो भी हैं उनकी दूध देने की क्षमता बढ़ी है।
दूध उत्पादन में देश में तीसरे नंबर पर
कुछ समय से प्रदेश के किसानों का स्र्झान खेती के साथ डेयरी फार्म की ओर भी बढ़ा है। वे दुधारू पशु पालकर आमदनी बढ़ाना चाहते हैं। वर्ष 2016-17 के सांख्यिकी आंकड़ों के मुताबिक दूध उत्पादन में मध्यप्रदेश अब देश में तीसरे नंबर का राज्य हो चुका है। पहले स्थान पर उत्तरप्रदेश व दूसरा राजस्थान है। पशुओं में लगातार वेक्सीनेशन से मुंहखुरा या खुरचपका रोग पर नियंत्रण से भी दूध उत्पादन बढ़ा है।
डेयरी फॉर्मिंग में एनआरआई और उच्च शिक्षित 
भारत में पशुपालन और दूध उत्पादन में अब युवा और उच्च शिक्षित लोग भी आ रहे हैं। महू के शासकीय वेटरनरी कॉलेज के एनिमल प्रोडक्शन विभाग के प्रमुख डॉ. संदीप नानावटी का कहना है अब तो आईआईटीयन, एनआरआई भी डेयरी फॉर्मिंग में आगे आ रहे हैं। कई सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी महू वेटरनरी कॉलेज आकर सलाह से डेयरी फॉर्म खोल रहे हैं।
नए उत्पाद किए जाएं तैयार
अधिक दूध है तो इससे चीज और आइसक्रीम भी बना सकते हैं। अच्छे से स्टोर करने पर यह कई महीने खराब नहीं होता है। गुजरात में भी अचानक दूध का उत्पादन बढ़ गया है। अमूल के पास अपने प्रोडक्ट की लंबी रेंज और एग्रेसिव मार्केटिंग है। मध्यप्रदेश को भी एग्रेसिव मार्केटिंग करके अपने उपभोक्ताओं के बीच नए प्रोडक्ट पहुंचाना चाहिए।
डॉ. जसुभाई प्रजापति, प्रिंसिपल, एसएमसी कॉलेज ऑफ डेयरी साइंस, आणंद (गुजरात
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