शहर की साहित्यिक संस्था “बज्में उर्दू कीं
शिवपुरी। मासिक काव्यगोष्ठीगत दिवस गांधी सेवाश्रम में आयोजित की गई। डॉ. मुकेश अनुरागी की अध्यक्षता एवं विजय भार्गव के आतिथ्य में सम्पन्न हुई इस काव्यगोष्ठी का संचालन सत्तार शिवपुरी ने यह कह कर दिया-
मैं उसका नाम लेकर बज्म का आगाज करता हूं
कि जो कलिया खिलाता है के जो सूरज उगाता है।
हास्य व्यंग के कवि विनोद अलवेला ने खद्यानों में मिलावट पर जोर देते हुए कहाः-
खाद्यानों में अखाद्यय मिला है लेना हो तो तौलू।
दूध दही और मक्खन में जहर कहो तो घोलू।।
वहीं दिनेश वशिष्ट ने लिखाः-
जिसके सीने में स्यायी के सिवा कुछ भी नहीं।
न जाने कब वो नई वारदात कर बैठे।।
डाॅ. मुकेश अनुरागी ने मनुहार होली का जिक्र करते हुए कहा-
मादक मंद सुगंध बयार और आँखिन-आँखिन आँख मिचोली
हाथन हाथ गुलाल मलौ और गालन गालन छागई रोली।।
वहीं सत्तार शिवपुरी ने कहा:-
प्रियतम फिर लो आइयो वा होरी सौ रंग।
बा होरी सौ रंग रंग कै छुटाये ना छूटे।
चाहे रूठै बहिन चाहे मम्मी रूठै।।।
फागुनी प्यार में मस्त हुऐ विजय भार्गव लिखते हैः-
दिल की तरह मचलती ये फागुनी हवा।
आँचल सी उडती ढलती ये फागुनी हवा।।
बौरा गये है आदमी के साथ-साथ पेड़।।
किसके नशे में चलती ये फागुनी हवा।।
हास्य कवि राजकुमार चैहान ने कहा:-
खनक-खनक खन-खन बजे बर्तन घर के आज।
मुझे पडौसी खुश हुऐ, वो समझे थे साज।।
तरही मिसरे पर मो0 याकूव “साबिर“ ने कहा-
बहुत सोचता हूँ कहानी लिखँू क्या।
सुलगती हुई जिन्दगानी लिखूँ क्या।।
वहीं राम कृष्ण मोर्य को देखें:-
यकीं गर नहीं है मुहब्बत का मेरी।
तेरे नाम में जिन्दगानी लिखूँ क्या।।
डाॅ. संजय शाक्य ने कहाः-
है तख्ती कहीं पै है खड़िया कहीं पै।
है इक शोर मुझमें कहानी लिखूँ क्या।।
भगवान सिंह यादव लिखते हैंः-
दखल न दो भगवान की जिन्दगी में।
न निज जिन्दगी की कहानी लिखूँ क्या।।
बज्म के सचिव रफीक इशरत को देखेंः-
झलकती है नफरत की बू शायरी में।
सयासत की मैहरवानी लिखूँ क्या।।
डाॅ. मुकेश अनुरागी के अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद सत्तार शिवपुरी ने सभी साहित्यकारों का आभार प्रदर्शित किया।
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