Press "Enter" to skip to content

बारखेड़ा कोलारस गॉव का दर्द

 
संवाददाता योगेन्द्र जैन पोहरी
पोहरी।
कोलारस विकास खण्ड के अंतर्गत एक ऐसा गांव भी, जो वर्तमान के विकास की
चकाचौंध से परे, अनेक वर्षों से अंधेरे में डूबा हुआ है। यहां के लोगों को
अनाज पिसवाने के लिये दूरस्थ गॉव दीघोदी में जाना पड़ता है। जहां पहुंचने के
लिये कोई रास्ता या सही पगडंडी भी नहीं है। रात के अंधेरे में अनेक प्रकार
की घटनायें घटित होने की शंका यहां के छात्र-छात्राओं, युवा वर्ग एवं
किसानों के विकास को प्रभावित करती हैं। कृषि के लिये पूरी तरह वरसात के
पानी पर निर्भर रहने बाले ये किसान बिजली के अभाव में शासन की अन्य लाभकारी
योजनाओं को ताकते नजर आते हैं। इस प्रकार का दंश झेलते हुये इन्हें एक दसक
से भी अधिक समय हो चुका है। यहां कोई नहीं जानता कि शासन द्वारा विद्युत
को लेकर क्या-क्या सुविधायें प्रदान की जा रही हैं, क्योंकि जब बिजली ही
नहीं, तो सुविधाओं के बारे में जानकारी का होना या न होना अर्थहीन दिखाई
देता है।
      यह बारखेड़ा गांव फोरलाईन सुजवाया, करमई से करीब
दो या तीन किलो मीटर की दूरी पर ग्राम दीघोदी के पास स्थित है। यहां पर
घरों की संख्या अनुमानित 20 तथा जनसंख्या करीव 250, जबकि मतदाताआंे की
अनुमानित संख्या 150 के समकक्ष है।
हेण्डपंपों की स्थिति-
खेतों
के लिये पानी-बिजली की बात छोड़कर, यदि पीने के पानी की बात की जाये तो इस
गांव में मात्र तीन हेण्डपंप लगे हुये हैं। जो विगत लंबे समय से पानी नहीं,
अपितु आंसू बहाते नजर आते हैं। ग्रामीणों के अनुसार हनुमान मंदिर प्रांगण
में जो हेण्ड पंप लगा हुआ है, इसमें मात्र चार पाइप डले हुये हैं, जो
किंचित पानी देकर उचक जाता है। लोगों का काफी समय इसके इंतजार में ही
समाप्त हो जाता है। दूसरा हेण्डपंप मंदिर और गांव के बीच एक रास्ते पर
दिखाई देता है, जो पूरी तरह बंद पड़ा हुआ है। जबकि लोगों का कहना है कि इस
हेण्डपंप में पानी तो है, किन्तु धरातल पर फाउण्डेशन, चैन, हैड, नटवोल्ट
एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी है। इसके ऊपर का हैड, प्राथमिक शाला के
हेण्डपंप में लगा दिया गया है। जिसके कारण यह बेकार पड़ा हुआ है। अंतिम
तीसरा हेण्डपंप भी लोगों के दुखीमन से तालमेल खाता हुआ नजर आता है। इसका
हत्था काम नहीं करता, चैन पूरी तरह से टूट चुकी है। लटके हुए हत्था की
विपरीत दिशा में एक लोहे की सब्बलिया लगाकर ग्रामीणों द्वारा  सब्बलिया को
ऊपर-नीचे करते हुए, इस हेण्डपंप से पानी निकाला जाता है। जब पानी भरती हुई
बालिका प्रियंका परिहार एवं पूजा खॅगार से हेण्डपंप के बारे में पूछा गया
तो उन्होंने बताया कि हम सब्बलिया लगाकर इसी तरह प्रतिदिन पानी भरकर अपने
घरों को ले जाते हैं। पानी के लिये मसक्कत करते हुए बच्चों का दर्द स्पष्ट
उनके चेहरों पर दिखाई दे रहा था। ग्रामीण कन्हैयालाल परिहार, विनोद कुमार
एवं शान्तिलाल परिहार ने हैण्डपंप के पास खड़े होकर पानी के लिये अपना दर्द
स्पष्ट किया। पीने के पानी के लिये इतना प्रयास, तो जानवरों के पीने के
लिये तो लोग सोचकर ही रह जाते हैं। जबकि इस गांव में जिले भर से अनेक लोग
भैरोबाबा के स्थान पर अपनी समस्याओं को लेकर आते हैं, जिन्हें पीने का पानी
नसीव नहीं हो पाता। महत्वपूर्ण बात यह है कि, यह हेण्डपंप विद्यालय परिषर
में लगा हुआ है। प्राथमिक शाला के छोटे-छोटे विद्यार्थी इससे किस प्रकार
पानी निकालकर पीते होंगे, इसकी कल्पना करना ही व्यर्थ होगा। यहां पर कुछ
कुए हैं जो व्यक्तिगत लोगों के पास हैं। जिनसे सार्वजनिक रूप से पानी लेना,
बहुत मुश्किल होता है। तथा कुछ कुओं पर कीचड़ में खपती
हुई गांव
की बेटियां एवं महिलायें अपने सिरों पर मटके रखे हुये वा-मुश्किल वापिस आती
हैं। कभी-कभी संतुलन खराब हो जाने के कारण बेटियां कीचड़ में खराब होकर
शर्मिंदगी झेलते हुये अपने घर वापिस पहंुचती हैं।
      युवा
ग्रामीण विनोद परिहार ने बताया कि मेरे द्वारा सीएम हेल्पलाईन पर विगत
महिनों में अनेकों बार पानी की ब्यवस्था में सुधार हेतु याचना की गई,
किन्तु आज तक भी समस्या का निराकरण नहीं हुआ। समस्या यथावत बनी हुई है।
समस्या निराकरण के लिये आज भी हम सभी ग्रामीणों को इंतजार है।
More from Fast SamacharMore posts in Fast Samachar »

Be First to Comment

Leave a Reply

error: Content is protected !!