मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने ओशो रजनीश ट्रस्ट के कोष
से जुड़ी कथित धोखाधड़ी और अनियमितता की जांच मामले में एक बड़ा निर्देश
दिया है। मंगलवार को एक इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग संबंधी
एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) को
भी प्रतिवादी बनाने का निर्देश दिया।
2016 में पुणे के योगेश ठक्कर
ने पिछले साल पुलिस में मामला दर्ज करवाया था कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के
ट्रस्टियों ने ओशो की वसीयत में उनके हस्ताक्षर में धोखाधडी की है। पूरे
मामले में कोई जांच न होते देख ठक्कर ने मामले की सीबीआई जांच कराने की
मांग की थी।
ठक्कर की अपील न्यायमूर्ति आर वी मोरे और न्यायमूर्ति
साधना जाधव की खंडपीठ ने कहा कि ‘हम सीबीआई को भी सुनना चाहते हैं, क्योंकि
याचिका दायर करने वाले ने उनसे इस मामले की जांच कराने की मांग की है।
कोर्ट ने सीबीआई को इस संबंध में नोटिस जारी करते हुए इस मामले की सुनवाई
अब 27 सितंबर को करने को कहा है।
यहां बताना जरूरी हो जाता है कि
आध्यात्मिक गुरु रजनीश की मौत 1990 में हो गई थी। वे अपने पीछे अकूत
धन-दौलत छोड़ गए थे, ऐसा लोगों का मानना है। उनकी वसीयत 1989 में ही बन गई
थी। ठक्कर का आरोप था कि यह वसीयत जाली है। उन्होंने अपने आरोप के समर्थन
में एक प्राइवेट हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट साथ में दी जो उनके आरोप को
सही साबित करती है।
ओशो ट्रस्ट से जुड़े कोष की जांच
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