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कलेक्टर की बेरुखी से मनमानी पर उतारू स्कूल संचालक मान्यता 8 वीं तक फिर 12 वीं तक बच्चों को दे रहे प्रवेश

योगेन्द्र जैन पोहरी-जिला कलेक्टर पूरे जिले का मुखिया होता है और हर विभाग में होने वाली गतिविधियों पर उसका कंट्रोल होता है, लेकिन पोहरी तहसील में शिक्षा विभाग द्वारा स्कूल संचालकों को अवैधानिक गतिविधयों के लिए खुला संरक्षण दे रखा है इसके बावजूद भी कलेक्टर द्वारा न तो शिक्षा विभाग के आलाधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही की जा रही है और न ही इन शिक्षा के ठेकेदार स्कूल संचालकों पर। पोहरी में एक दर्जन के करीब ऐसे स्कूल संचालित हो रहे हैं जिनके पास मान्यता सिर्फ 8 वीं तक की है, लेकिन यह बच्चों को 12 वीं तक प्रवेश दिया जाता है और निरंतर कक्षाएं भी संचालित हो रही है। इन स्कूल संचालकों द्वारा इनके पास पूरी मान्यता होने का ढोंग रचाया जाता है, लेकिन सूत्रों की मानें तो हकीकत इससे अलग ही है। बताया जाता है कि विभाग के आलाधिकारियों को इन स्कूल संचालकों द्वारा एक मोटी रकम भेंट की जाती है  इसके बाद इन्हें बच्चों एवं अभिभावकों के साथ खिलवाड़ करने की खुली छूट मिल जाती है। इसी का परिणाम है कि यह स्कूल संचालक बेखौफ अंदाज में अपने कारनामे को अंजाम भी दे रहे हैं।
जानकारी के अनुसार पोहरी तहसील में करीब डेढ़ दर्जन स्कूलों का संचालन हो रहा है जिनमेें से सिर्फ अमन पब्लिक स्कूल, पोहरी पब्लिक स्कूल और शांति निकेतन स्कूल के पास 12 वीं तक की मान्यता है और स्वामी विवेकानंद हाई स्कूल के पास 10 वीं तक की मान्यता है। इसके अलावा संचालित होने वाले अधिकांश विद्यालय संचालक केवल अपनी मनमानी और हठधर्मिता पर उतारू हैं जो अपने निजी स्वार्थ के लिए शिक्षा जैसे पवित्र कार्य को भी पूरी तरह से व्यवसायिक बनाकर देश के भविष्य कहे जाने वाले विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूके रहे हैं। खासबात यह है कि इन स्कूल संचालकों द्वारा इस कृत्य को कोई छुपकर अंजाम नहीं दिया जा रहा है, बल्कि खुलेआम होर्डिग्स, बैनर, पैम्प्लेट्स आदि के माध्यम से स्कूलों का प्रचार-प्रसार कर अभिभावकों एवं बच्चों को लुभाया जा रहा है। जानकारी के अभाव में यह भोले-भाले अभिभावक इन स्कूल संचालकों की मीठी-मीठी बातों एवं तरह-तरह की सुविधाओं के प्रलोभनों झांसे में आ जाते हैं और अपने बच्चों के भविष्य को संवारने की बजाय अंधकार में धकेल देते हैं। यहां विचारणीय पहलू यह है कि इन स्कूल संचालकों की करतूतों को कई बार समाचार पत्रों के माध्यम से उजागर भी किया गया है, लेकिन फिर भी प्रशासन अपनी निंद्रा से नहीं जाग पाया है। नवागत कलेक्टर से इन स्कूल संचालकों पर कार्यवाही की आश थी, लेकिन उनके द्वारा भी इस ओर कोई कदम नहीं उठाने से स्कूल संचालकों के हौंसले बुलंद है और कार्यवाही की आश लगाए बैठे लोग निराश।

बच्चों पर थोपी जा रही मनमानी की किताबें-कस्बे के प्राइवेट स्कूल बच्चों को मनमानी किताबें थोपकर हजारों रुपए कमीशन के बतौर लेते हैं। इसी तरह निर्धारित दुकान से यूनिफार्म लेने, जल्द ड्रेस और ब्लेजर बदलने में भी कमीशन का खेल जारी है। यह सभी सामग्री स्कूल से टाइअप दुकान से ही मिलती है जिससे स्कूल संचालकों को मोटा कमीशन प्राप्त होता है। वहीं सभी स्कूलों की मान्यताओं और संचालन के लिए कुछ नियम जारी किए गए हैं। जिनका पालन करना हर निजी स्कूल संचालकों को जरुरी है। फिर भी इनका पालन नहीं हो रहा है। इधर अफसर भी आदेशों का पालन कराने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

नियमों को स्कूल संचालकों ने हवा में उड़ाया-नियमों की बात करें तो किसी भी स्कूल संचालक द्वारा बच्चों को किसी विशेष दुकान से खरीदने को बाध्य नहीं किया जाएगा। किसी भी शिक्षण सामग्री पर स्कूल का नाम अंकित नहीं होगा। पुस्तक, कॉपियां या अन्य सामग्री किसी दुकान विशेष से खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। प्रवेश शुल्क बार-बार नहीं लिया जाएगा। प्रवेश शुल्क की राशि एक वर्ष के शिक्षण शुल्क से अधिक नहीं होगी। शाला विकास के नाम पर एक माह के शिक्षण शुल्क से अधिक की राशि वसूल नहीं की जाएगी। केपिटेशन फीस, दान या उपहार नाम से कोई भी फीस वसूल नहीं की जा सकती है। शुल्क का भुगतान मासिक या त्रैमासिक किस्तों में होगा। विलंब शुल्क देय राशि के एक प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। इन सब नियमों की स्कूल संचालकों द्वारा खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

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