गुना में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह यादव को मैदान में उतारा है। यादवेंद्र चर्चा में इसलिए भी हैं क्योंकि गुना से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव चुनाव लड़ना चाहते थे। दिलचस्प बात यह है कि यादवेंद्र की मां जिला पंचायत सदस्य हैं और भाजपा में हैं। वे इस चुनाव में सिंधिया के लिए वोट मांगेंगी, हालांकि यादवेंद्र कहते हैं- ‘मां का आशीर्वाद मेरे साथ है।’
अशोकनगर का राव भवन। यही यादवेंद्र का घर है, जहां वे अपनी मां, भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहते हैं। यह घर अशोकनगर की राजनीति का केंद्र भी हैं। उनके परिवार के लगभग सभी बड़े सदस्य चुनावी राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन इन दिनों घर का माहौल थोड़ा अलग है। कुछ महीने पहले तक परिवार के सभी सदस्य भाजपा में थे। अब परिवार राजनीतिक रूप से दो हिस्सों में बंट गया है। यादवेंद्र और उनकी पत्नी कांग्रेस में हैं तो भाई और मां भाजपा में।
दिनभर प्रचार की थकान के बाद घर पहुंचे यादवेंद्र से फास्टसामाचार यही सवाल किया कि उनकी मां और भाई भाजपा में हैं, फिर कैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला करेंगे? उनका जवाब था – ‘सबकी अलग-अलग विचारधारा होती है। गुना लोकसभा में लाखों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो मेरे साथ खड़े हैं। वे मेरा प्रचार करेंगे।’ क्या चुनाव के लिए मां का आशीर्वाद मिला है? यादवेंद्र बोले- ‘बिल्कुल। मां का आशीर्वाद हमेशा रहता है। मां तो मां होती है। सबकी मां अपने बच्चों को आशीर्वाद देती है।’
यादवेंद्र सिंह का परिवार उनके चुनाव लड़ने के समर्थन में नहीं था? यादवेंद्र इस बात को नकाराते हैं। उन्होंने कहा – ‘यह बिल्कुल गलत है कि मुझ पर चुनाव न लड़ने को लेकर प्रेशर था। कहीं से कहीं तक दबाव में नहीं आया। न मैं ऐसा व्यक्ति हूं। न मुझ पर आगे कोई दबाव आएगा। मैं स्वतंत्र हूं। मैं किसी से डरने वाला, झुकने वाला व्यक्ति नहीं हूं।’
यादवेन्द्र का राजनीति कुनबा
आखिर सिंधिया से मुकाबले के लिए यादवेंद्र पर क्यों भरोसा?
गुना लोकसभा क्षेत्र में यादव समाज के वोटों की संख्या लगभग दो लाख है। सबसे ज्यादा मुंगावली विधानसभा में 50 हजार से ज्यादा यादव वोटर हैं। चंदेरी, कोलारस, शिवपुरी में भी यादव बड़ी संख्या मे हैं। यादवेंद्र परिवार की लंबे समय से क्षेत्र में सक्रियता के कारण प्रभाव है, इसलिए कांग्रेस के सबसे मजबूत विकल्प यादवेंद्र ही थे।
अब जानते हैं यादवेंद्र परिवार के सियासी सफर को..
सिंधिया के परंपरागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, पिता तीन बार विधायक रहे
यादवेंद्र सिंह का परिवार मूल रूप से अमरोद गांव का रहने वाला है। उनके पिता स्व. देशराज सिंह यादव इस इलाके में भाजपा का बड़ा नाम थे। वह अविभाजित गुना जिले के दो बार भाजपा जिलाध्यक्ष रहे। तीन बार विधायक रहे। 1990, 1998 और 2008 में मुंगावली से विधायक चुने गए।
उन्होंने 6 बार विधानसभा का चुनाव लड़ा। दो बार उन्हें लोकसभा का चुनाव भी भाजपा के टिकट पर लड़ने का मौका मिला। पहली बार वह माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़े। इसके बाद 2002 में हुए उपचुनाव में वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़े। दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
मां जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं, कांग्रेस में जाकर भाजपा में लौटी
यादवेंद्र सिंह की मां बाई साहब यादव भी राजनीति में सक्रिय हैं। 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। 2018 में मुंगावली विधानसभा के उपचुनाव में वे भाजपा उम्मीदवार थीं। कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र यादव के सामने वे हार गईं। 2022 के पंचायत चुनाव में वे जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं।
2023 के विधानसभा चुनाव में उनका परिवार मुंगावली से भाजपा से टिकट मांग रहा था। भाजपा ने यहां से कांग्रेस से भाजपा में आए बृजेंद्र सिंह यादव को प्रत्याशी बनाया। बाई साहब यादव ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस की सदस्यता ले ली। चुनाव के बाद वे वापस भाजपा में लौट आईं।
यादवेंद्र का राजनीतिक करियर…
2015 में पहली बार जिला पंचायत सदस्य बने। इस समय इनका परिवार भाजपा से जुड़ा रहा। हालांकि पार्टी में किसी भी पद पर ये नहीं थे। पहली बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद 2023 में दोबारा जिपं सदस्य चुने गए। इसी साल विधानसभा चुनाव से पहले यादवेंद्र कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें मुंगावली विधानसभा सीट से टिकट दिया था। उनके सामने थे भाजपा प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह यादव।
बृजेंद्र सिंह यादव रिश्ते में यादवेंद्र के चाचा हैं। चाचा-भतीजे की इस सियासी लड़ाई में चाचा भारी पड़े।
छोटे भाई कांग्रेस में गए और फिर भाजपा में लौटे, जिला पंचायत अध्यक्ष बने
यादवेंद्र यादव के छोटे भाई भी राजनीति में सक्रिय हैं। वे 2015 से कृषि उपज मंडी अशोकनगर के अध्यक्ष रहे। भाजपा सरकार में वे निगम के उपाध्यक्ष रहे। 2023 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि, विधानसभा चुनाव के बाद वह वापस भाजपा में लौट आए।
तब के जिला पंचायत अध्यक्ष जगन्नाथ सिंह रघुवंशी के विधायक बनने से जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ जिला पंचायत सदस्य की कुर्सी रिक्त हो गई थी। खाली हुई सीट के लिए उपचुनाव में अजय यादव जिला पंचायत सदस्य बने। भाजपा ने उन्हें वापस अपने खेमे में मिला लिया। इसके बाद वह जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए। इनकी पत्नी रीना यादव भी जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं।।
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