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किसान जलभराव की स्थिति होने पर पानी निकासी हेतु नालियों की व्यवस्था करें | Shivpuri News


शिवपुरी। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान एवं कृषि विज्ञान केन्द्र शिवपुरी द्वारा किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि लगातार वर्षा होने के कारण ऐसे क्षेत्र जहां जलभराव की स्थिति निर्मित हुई है, वहां पानी के निकास हेतु नालियों की व्यवस्था करें।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख कृषि विज्ञान केन्द्र शिवपुरी ने बताया कि कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन के फसल में पत्ती खाने वाली इल्लियों के साथ-साथ सफेद मक्खी का भी प्रकोप देखा गया है। इनके नियंत्रण हेतु पूर्व मिश्रित कीटनाशक बीटा सायफ्लूथ्रीन$इमिडाक्लोप्रीड 350 मि.ली. प्रति हैक्टेयर अथवा थायमिथाॅक्सम$लेम्बडा सायहेलोथ्रीन 125 मि.ली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह है जिससे तना मक्खी का भी नियंत्रण होगा। जिन स्थानों पर गर्डल बीटल का प्रकोप शुरू हो गया हो वहां पर थाइक्लोप्रीड 21.7 एस.सी. 650 मि.ली. प्रति हैक्टेयर अथवा प्रोफेनोफाॅस 50 ईसी (1.25 ली. प्रति हैक्टेयर) या ट्रायझोफाॅस 40 ईसी (800 मि.ली. प्रति हैक्टेयर) की दर से छिड़काव करें। कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल में माइरोथिसियस लीफ स्पाॅट, एन्थ्रेकनोज, एरियल ब्लाईट एवं चारकोल राॅट बीमारी का प्रकोप देखा गया है। इसके नियंत्रण हेतु कृषकों को सलाह है कि फसल एवं टेबूकोनाझोल 625 मि.ली. प्रति हैक्टेयर अथवा टेबूकोनाझोल$सल्फर 1 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर अथवा हेक्झाकोनाझोल 500 मि.ली. प्रति हैक्टेयर अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबिन 500 ग्रा. प्रति हैक्टेयर को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
इसी प्रकार पीला मोजाइक बीमारी को फैलाने वाली सफेद मक्खी के प्रबंधन के लिए खेत में यलो स्टीकी ट्रेप का प्रयोग करें जिससे मक्खी के वयस्क नष्ट किये जा सके। साथ ही पीला मोजाइक रोग से ग्रसित पौधों/अवशेषों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें। रोग की तीव्रता अधिक होने पर थायोमिथाक्सम 25 डब्लूजी (100 ग्रा./500 लीटर पानी) का छिड़काव करें। बुवाई के समय संतुलित पोषण का उपयोग न करने पर फसल कमजोर एवं पीली हो जाती है जिसमें कीट एवं बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है। ऐसी स्थिति में संतुलित पोषण के लिए एन.पी.के. 19ः19ः19 का 2 प्रतिशत घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
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