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SHIVPURI विस सीट पर गढ़ाई राजनैतिक दलों ने नजरें, 85 के बाद से Congress को जीत की दरकार

दो नगर पालिका और एक लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक परिणाम दे चुका है यह क्षेत्र 

शिवपुरी। शिवपुरी जिले की पांच विधानसभा सीटों में से जिला मुख्यालय की शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र पर इस बार सभी की नजरें केन्द्रित रहेंगी। हालांकि 2007 के उपचुनाव को यदि छोड़ दे तो 1985 के बाद कांग्रेस इस विधानसभा क्षेत्र से कभी नहीं जीती है, लेकिन 2005 से लेकर अब तक इस क्षेत्र में कम से कम तीन बार आश्चर्यजनक परिणाम आ चुके हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में 2014 के लोकसभा चुनाव में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी पराजय का सामना करना पड़ा था और 2015 के नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से शिवपुरी से कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के प्रत्याशी हरिओम राठौर को पराजय का सामना करना पड़ा था। इस बार भी जिस तरह से क्षेत्र में जनसमस्याएं व्याप्त हैं उससे कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की मुश्किलें साफ-साफ नजर आ रही हैं। 
इस क्षेत्र ने सबसे पहले झटका राजनैतिक समीक्षकों को 2005 के नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में दिया। भाजपा ने अध्यक्ष पद हेतु पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन को उम्मीद्वार बनाया था उस समय प्रदेश में साध्वी उमाभारती की सरकार थी। सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पूर्व नपाध्यक्ष गणेशीलाल जैन को मैदान में उतारा। कांग्रेस से टिकट की मांग पूर्व नपा उपाध्यक्ष जगमोहन सिंह सेंगर ने भी की थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया जिससे वह बगावती होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में कूद गए। उस चुनाव में जगमोहन सिंह सेंगर ने 10 हजार मतों से कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों को पराजित कर एक नया इतिहास लिखा। शिवपुरी नगर पालिका के उन्हें पहले निर्दलीय अध्यक्ष होने का गौरव हासिल हुआ, लेकिन अध्यक्ष रहते हुए जब वह शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे तो जितने मतों से वह नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे उतने मत वह विधानसभा चुनाव में हासिल नहीं कर पाए और उन्हें अपनी जमानत से हाथ धोना पड़ा। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को करारा झटका दिया। इस विधानसभा क्षेत्र में सिंधिया परिवार का प्रभाव रहा और यहां से कभी भी सिंधिया परिवार के किसी भी सदस्य को हार का सामना नहीं करना पड़ा। उस चुनाव में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले भाजपा ने जयभान सिंह पवैया को चुनाव मैदान में उतारा था जिनकी इस क्षेत्र में कोई बहुत ज्यादा पहचान नहीं थी, लेकिन शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से भारी मतों से सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा। नगर पालिका क्षेत्र शिवपुरी में तो वह लगभग 15 हजार मतों से भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया से पीछे रहे, ग्रामीण क्षेत्रों में अवश्य उन्होंने बढ़त हासिल की, लेकिन कुल मिलाकर विधानसभा क्षेत्र शिवपुरी से वह 5 हजार मतों से पीछे रहे। इसकी कसक आज भी उनके मन में है। स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से 2013 के चुनाव में 11 हजार से अधिक मतों से विजय हासिल हुई थी। उन्होंने कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी को पराजित किया था, लेकिन इसके डेढ़ साल बाद हुए नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया पूरी मेहनत के बाद भी अपने प्रत्याशी हरिओम राठौर को नहीं जिता पाईं और लोकसभा चुनाव में शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से पराजित हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रत्याशी मुन्नालाल कुशवाह को 6 हजार मतों से विजयश्री हासिल हुई। उस चुनाव में यशोधरा राजे के प्रचार के बावजूद भी मतदाता ने तत्कालीन भाजपा की नगर परिषद के खिलाफ मतदान किया था। इस बार भी 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवपुरी पर सभी की नजरें केन्द्रित हैं, क्योंकि नगर पालिका अध्यक्ष पद पर कांग्रेस काबिज है जबकि विधायक पद पर भाजपा की यशोधरा राजे सिंधिया आसीन हैं। पिछले पांच साल में शिवपुरी के लोगों ने बहुत जनसमस्याएं झेली हैं। एक-एक बूंद पानी के लिए लोग तरसे हैं और सिंध के पानी का लगातार लोगों ने इंतजार किया है। सीवेज खुदाई से खराब हुई सड़कें भी समस्याएं बनी हैं। हालांकि यशोधरा राजे सिंधिया का दावा है कि उन्होंने काफी सड़कें बनवा दी हैं और जो  नहीं बनी उसका कारण नगर पालिका की निष्क्रियता है। नगर पालिका के भ्रष्टाचार और कार्यप्रणाली से लोग परेशान बने हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थिति विकट है और इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए परेशानियां बनी हुई हैं। 
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