
हैं। केंद्र व राज्य सरकार ने जिले में कुपोषण से निपटने के लिए छह पोषण
पुनर्वास केंद्र भी खोले हैं, लेकिन केंद्रों में आधे बिस्तर खाली हैं।
दूसरी ओर लोग कुपोषण से अपने नौनिहालों को बचाने के लिए इलाज से ज्यादा
टोने-टोटके पर भरोसा कर बाबाओं से झाड़ फूंक करा रहे हैं। हाल ही में जिला
अस्पताल में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। यहां एनआरसी में इलाज रत एक
मासूम को उसके माता-पिता पूजा पाठ के लिए जबरन घर लेकर गए। यहां छह घंटे
बाद मासूम की मौत हो गई।
इलाज छोड़कर गए पूजा करने, बालिका की मौत
एनआरसी
से मिली जानकारी के अनुसार बरखेड़ा गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गिरजा ने
अपने गांव की ढाई वर्षीय दीपिका को कुपोषण के चलते जिला अस्पताल के पोषण
पुनर्वास केंद्र में 5 सितम्बर को 15 दिनों के लिए भर्ती किया था। इसके लिए
उन्होंने बच्चे के माता-पिता की खासी मान मनौव्वल की थी।
भर्ती
कराने के बाद कार्यकर्ता अपने गांव लौट गई। इसके अगले ही दिन 6 सितम्बर की
शाम अटेंडर बसंतीबाई केंद्र की नर्स को लिखित में यह कहकर मासूम को घर ले
गई कि देवताओं की पूजा करना है। पूजा के बाद वापस बच्चे को ले आएगी। एनआरसी
में पदस्थ नर्स रचना मेवाड़े ने बताया कि केंद्र से जाने के छह घंटे बाद ही
बालिका की मौत हो गई।
पुनर्वास केंद्र में नहीं कराया भर्ती, रुका बच्चे का विकास
भादाहेड़ी
निवासी राधाबाई के 12 माह के कुपोषित बेटे राजवीर का एनआरसी में इलाज करा
रही अटेंडर ने बताया कि बच्चे की सुरक्षा एवं बीमारियों से बचाने के सालभर
से बाबाओं के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई आराम नहीं हुआ। एनआरसी में
पदस्थ नर्स रचना मेवाड़े ने बताया कि 12 माह के राजवीर का वजन सिर्फ तीन
किलो 100 ग्राम है। इतना वजन जन्म के समय रहता है। यानी बच्चा अति कुपोषित
है। जन्म के बाद से उसका विकास हुआ ही नहीं है। समय रहते बच्चा अस्पताल ले
आते तो अब तक उसकी सेहत में काफी सुधार हो जाता।
बाबा का धागा बंधवाया, आराम नहीं लगा तो पहुंचे अस्पताल
दूबली
की रहने वाली उमा साहू एनआरसी राजगढ़ में अपनी 22 माह की बेटी सौम्या को
इलाज के लिए लेकर आई। कुपोषण की शिकार इस बालिका का वजन महज 6 किलो 450
ग्राम था और गले में लाल पीले धागे बंधे थ पूछा
तो बालिका की मां उमा ने बताया कि कुपोषण एवं बीमारियों से बचाने के लिए
बाबा के यहां लेकर गए थे। यहां से धागा बांधा गया था। बाबा के यहां से आराम
होने की आस में काफी वक्त बीत गया, लेकिन जब कोई फायदा नहीं हुआ तो एनआरसी
में इलाज कराने आई हूं। यहां बालिका को भर्ती कर इलाज दिया जा रहा है।
मबावि के मैदानी अमले की जिम्मेदारी
पोषण
पुनर्वास केंद्रों में बच्चों को भर्ती कराने की जिम्मेदारी महिला बाल
विकास के मैदानी अमले की है, लेकिन ऐसे बच्चों के माता-पिता की जिद के आगे
मबावि का मैदानी अमला बच्चों को अस्पताल तक पहुंचाने में नाकाम रहता है। इस
मामले में सीएमएचओ डॉ अनुसूईया गवली ने लोगों में अशिक्षा को जिम्मेदार
ठहराते हुए मबावि के मैदानी अमले की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए
टिप्पणी की है कि अमला लोगों को जागरूक नहीं कर पा रहा है।
लोगों को जागरूक नहीं कर पा रहा मबावि का मैदानी अमला..
लोगों
में रूढ़ीवादिता है। अशिक्षा के कारण लोग इलाज से ज्यादा टोने-टोटकों में
भरोसा करते हैं। हमने दस्तक अभियान के जरिए जिले के कुपोषित बच्चों का
घर-घर जाकर सर्वे करा किया है कि किन बच्चों का घर पर ही और किसे
भर्ती करके इलाज देना है। केंद्र एवं राज्य सरकार की मंशा है कि कुपोषण
बच्चों में न हो। हम एनआरसी में क्षमता से अधिक बच्चे आने पर भी व्यवस्था
करने को तैयार हैं लेकिन अधिकांश बेड खाली हैं। महिला बाल विकास विभाग का
मैदानी अमला इसके लिए जिम्मेदार है। मबावि अफसर से इस संबंध में बात
करेंगे। –
डॉ. अनुसूईया गवली, सीएमएचओ
बाबाओं को भी देनी होगी समझाइश
लोगों
में रूढ़ीवादिता की धारणा तब तक खत्म नहीं होगी, जब तक वह शिक्षित न हों।
दूसरी बात सरकारी विज्ञापन और रेडियो प्रसारण से ज्यादा प्रभावी जमीनी
कार्य होते हैं। जागरूकता के लिए बाबाओं और झाड़ फूंक करने वालों को समझाना
होगा कि आप लोगों के साथ खिलवाड़ न करें और अस्पताल जाने की सलाह दें।
– डॉ. पवन राठी, मनोचिकित्सक अरविंदो अस्पताल इंदौर
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