भागवत कथा में रूकमणी मंगल संपन्न एवं सुदाम चरित्र आज

कोलारस-श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में कोलारस के भक्तगण अपनी उपस्थिती दर्ज करा रहे है गत रोज जगतपुर ए बी रोड स्थित कल्याण सिंघल के मकान के समीप श्री मद भागवत महा गाथा का गान पं. भरतलाल शास्त्री जी द्वारा मथुर संगीतमय में किया जा रहा है। जहां भगवत रस का पान निरन्तर भक्तगण कर रहे है। भगवान श्री कृष्ण की रस भरी कथा को सुनाते हुये बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला इस प्रकार की सम्पूर्ण बर्णन भक्तगणो केेा श्रवण कराया। कंश बध की कथा सुनाई।
रूकमणी मंगल की कथा को श्रवण कराते हुये। शास्त्री ने भक्तगणो को बताया कि भगवान श्री कृष्ण को रूकमणी जी ने पत्र लिखा और भगवान श्री कृष्ण रूकमणी के लिखे हुये। पत्र के अनुसार देवी मंदिर पहुंच गये जहां रूकमणी जी खुद रथ पर सवार होकर भगवान श्री के साथ चली गई और भगवान श्री कृष्ण के साथ विवाह कर लिया। इसके बाद कथा स्थल पर विवाह उत्सव मनाया गया। भक्तगणो ने स्वरूपो के दर्शन कर चरण पखारे एवं आशिर्वाद प्राप्त किया। गोपी और ऊद्घभ संबाद सुनाते हुये। कहा कि एक बार उद्घभ जी ने भगवान श्री कृष्ण से ईश्वर के ज्ञात होने की बात उल्लेखित की। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने प्रेम की परीसीमा की ओर दृष्टिï करते हुये गौकुल धाम भेज दिया। जहां उद्घव जी ने गोपियो की एवं गऊओ की दशा को देखा तो वह स्तव्ध हो गये। और गोपियो से कृष्ण व्रिरह होने की बात को कहा तो गोपियो ने प्रेम मग्न होते हुये। प्रेम की प्रेम मूर्ति को दर्शन कराया। उद्घभ इस बात से चिंतन में थे कि गौपियां एवं गऊयें जहां भगवान श्री कृष्ण से जी जान से प्रेम करती है। और उनके विरह में रो रही है। यह देख कर वह रह न सके और गोपियो से प्रश्न करने लगे तो गोपियो ने उत्तर दिया। कि भगवान श्री कृष्ण तो हमारे आंखो में एवं हृदय में निवास करते है। और उनके दर्शन कर कर के आश्रुृ पात हो रहे है। जिनका आंनद वाणी से प्रकट नही किया जा सकता। यदि कृष्ण का विरह हमे सता रहा होता तो मात्र 7 कि मी दूर मथुरा नगरी है। जहां हम भगवान श्री कृष्ण का दर्शन प्रति दिन करके बापिस लोट आते। किन्तु उनके दर्शनो का आनंद हमें पल पल हो रहा है। इस आनंद का वखान किसी भी प्रकार से वखान नही किया जा सकता है।
कोलारस-श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में कोलारस के भक्तगण अपनी उपस्थिती दर्ज करा रहे है गत रोज जगतपुर ए बी रोड स्थित कल्याण सिंघल के मकान के समीप श्री मद भागवत महा गाथा का गान पं. भरतलाल शास्त्री जी द्वारा मथुर संगीतमय में किया जा रहा है। जहां भगवत रस का पान निरन्तर भक्तगण कर रहे है। भगवान श्री कृष्ण की रस भरी कथा को सुनाते हुये बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला इस प्रकार की सम्पूर्ण बर्णन भक्तगणो केेा श्रवण कराया। कंश बध की कथा सुनाई।
रूकमणी मंगल की कथा को श्रवण कराते हुये। शास्त्री ने भक्तगणो को बताया कि भगवान श्री कृष्ण को रूकमणी जी ने पत्र लिखा और भगवान श्री कृष्ण रूकमणी के लिखे हुये। पत्र के अनुसार देवी मंदिर पहुंच गये जहां रूकमणी जी खुद रथ पर सवार होकर भगवान श्री के साथ चली गई और भगवान श्री कृष्ण के साथ विवाह कर लिया। इसके बाद कथा स्थल पर विवाह उत्सव मनाया गया। भक्तगणो ने स्वरूपो के दर्शन कर चरण पखारे एवं आशिर्वाद प्राप्त किया। गोपी और ऊद्घभ संबाद सुनाते हुये। कहा कि एक बार उद्घभ जी ने भगवान श्री कृष्ण से ईश्वर के ज्ञात होने की बात उल्लेखित की। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने प्रेम की परीसीमा की ओर दृष्टिï करते हुये गौकुल धाम भेज दिया। जहां उद्घव जी ने गोपियो की एवं गऊओ की दशा को देखा तो वह स्तव्ध हो गये। और गोपियो से कृष्ण व्रिरह होने की बात को कहा तो गोपियो ने प्रेम मग्न होते हुये। प्रेम की प्रेम मूर्ति को दर्शन कराया। उद्घभ इस बात से चिंतन में थे कि गौपियां एवं गऊयें जहां भगवान श्री कृष्ण से जी जान से प्रेम करती है। और उनके विरह में रो रही है। यह देख कर वह रह न सके और गोपियो से प्रश्न करने लगे तो गोपियो ने उत्तर दिया। कि भगवान श्री कृष्ण तो हमारे आंखो में एवं हृदय में निवास करते है। और उनके दर्शन कर कर के आश्रुृ पात हो रहे है। जिनका आंनद वाणी से प्रकट नही किया जा सकता। यदि कृष्ण का विरह हमे सता रहा होता तो मात्र 7 कि मी दूर मथुरा नगरी है। जहां हम भगवान श्री कृष्ण का दर्शन प्रति दिन करके बापिस लोट आते। किन्तु उनके दर्शनो का आनंद हमें पल पल हो रहा है। इस आनंद का वखान किसी भी प्रकार से वखान नही किया जा सकता है।
Be First to Comment