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फिर दिखी मैली चादर ………….

फिर दिखी मैली चादर 

जब बागड़ खेत खा जाए तो किसे दोष दें! जब रक्षक ही भक्षक बन जायें तो किसे दोष दें! जब स्त्री ही स्त्री की अस्मिता को लुटने दे तो किसे दोष दें! परमार्थ के नाम पर दुराचार होने लगे तो किसे दोष दें! नदी जब अपने किनारे तोड़ दे तो किसे दोष दें! जाहिर तौर पर इन सबके प्रत्यक्ष और सतही कारण ढूड़ लिए जायेंगे लेकिन असल दोषी उजागर नहीं होंगे! वह बच जायेंगे। शकुंतला परमार्थ समिति आश्रम में जो सनसनी खेज मामला उजागर हुआ है क्या वह मामला इतना ही है? क्या सिर्फ दो बालिकायें ही दुराचार का शिकार बनी है? क्या सिर्फ संचालिका का पिता ही दुराचार का आरोपी है? पुलिस रिपोर्ट में जो सच सामने आया है क्या वही सच है?…? ऐसे बहुतेरे लेकिन ज्वलंत सवाल व्यवस्था के सामने मुंह वाये खड़े हैं। मामले की सतह का सच जितना डरावना है। उससे अधिक भयावह स्थिति तल (गहरे) में मिलने की पूरी संभावना है। कई ऐसे आरोपित तथ्य उभरकर चर्चा में सामने आए हैं जिनसे मानवता पूरी तरह शर्मसार हो जाए जिनमें आरोप लगाया जा रहा है कि आश्रम की बालिकाओं के साथ दुराचार सिर्फ आश्रम में ही नहीं आश्रम के बाहर भी आरोपित तौर पर होता था! सनसनी खेज इल्जाम यह भी है कि सरकारी महकमों से जुड़े चेहरे भी पाप की गंदगी में आरोपित तौर पर डूबे हुए थे कई शिवपुरी में रहे और रह रहे अधिकारियों के नाम भी कहा सुनी में कलंकित हो रहे हैं चौैकाने वाला आरोप यह भी है कि आश्रम में अंजाम दिए जा रहे गोरख धंधों को कुछ सफेदपोशों की सरपरस्ती हांसिल थी! तो क्या यह सभी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आरोपी पुलिस की विवेचना की विषय वस्तु बनेंगे? शिवपुरी एसपी की निष्पक्ष और निडर कार्रवाई क्या बालिकाओं की प्रताडऩा के सभी आरोपियों को सीखचे में लाएगी? उम्मीद और अनुभवजनित सच यह हो सकता है कि हां! जरूर लाएगी। उजागर और छुपे नारी द्रोहियों को सजा मिलना जरूरी है क्योंकि सिर्फ और सिर्फ नारी में तन देखने वाले-यत्न पूर्वक भोगने वालों को दण्डित करने में ही आधी दुनिया (नारी)के साथ न्याय है। धिक्कार है जो बचाने के नाम पर मार डाले। उसकी जात पर थूं है जो शरीर ढांकने-इज्जत बचाने (परमार्थ में संचालित आश्रम)के नाम पर ओढ़ाई गई चादर को रात के अंधेरे में आबरू लूटने का माध्यम बना ले। आदम शक्ल में दिखने वाले इन जनावरों को वर्तमान में सीखचे में पहुंचाने के साथ ही सीखचों को ही उनका भविष्य बना देना चाहिए। धिक्कार है उस व्यवस्था पर जिसने उजली चादर (परमार्थ)के नाम पर असहाय बालिकाओं को यौन दुराचार की भेंट चढ़ा दिया। निरीह बालिकाओं की इज्जत बचाने की व्यवस्था में उनकी इज्जत लुटवा दी। प्रकरण में सामने आई मैली चादर में कई चेहरे कलंकित है जो दण्डित नहीं होंगे!…शर्मनाक। 

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