बिलासपुर। बिलासपुर रेलवे डिवीजन की फुटबाल टीम में
गोलकीपर की भूमिका निभा चुके फुटबाल खिलाड़ी विनोद कुमार को कई कोशिश व रेल
अफसरों के आश्वासन के बाद भी नौकरी नहीं मिली। पारिवारिक स्थिति ने उसे खेल
में भी आगे नहीं बढ़ने दिया। वहीं अब वह गलियों में घूम-घूमकर सब्जी बेचने
को मजबूर है।
विनोद कुमार गोलकीपर के रूप में रेलवे और जिला फुटबाल
संघ के कई टूर्नामेंट में खेल चुका है। फुटबाल के प्रति लगाव ने स्कूल से
इस खेल से जोड़ा। फिर 1993 से उसने रेलवे की डिवीजन टीम से खेलना शुरू किया।
रेलवे
की टीम को गोलकीपर नहीं मिलता था। इस वजह से विनोद को टीम में प्राथमिकता
मिलती थी। वह 8 साल तक इस टीम के गोलकीपर बने रहे। वर्ष 1998 में स्पोर्ट्स
कोटे से जॉब के लिए अंतिम ट्रायल हुआ, लेकिन उसका चयन नहीं हो सका।
ट्रायल
लेने वालों ने बाद में विचार करने की बात कही। फिर यह सीट क्रिकेट कोटे
में चली गई। इससे वे नौकरी से वंचित रहे। इसके बाद 2004 में जोन बनने के
समय उम्र सीमा निकल जाने की वजह से नौकरी की उम्मीद ही खत्म हो गई। इस वजह
से परिवार को संभालने और अपनी आर्थिक कमी को दूर करने वे घूम-घूमकर सब्जी
बेचते हैं।
4 नेशनल में चयन, दो में मौका, अब कर रहा हमाली
विनोद
की तरह कभी फुटबाल के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे राकेश बुराडे की कहानी है।
उनका चयन 4 राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए हुआ। वहीं कोलकाता और दिल्ली
में सुब्रतो मुखर्जी कप में खेलने का मौका मिला।
दो राष्ट्रीय
प्रतियोगिताओं में घर की माली हालत खराब होने से नहीं जा सके। खेल की वजह
से जगह-जगह नौकरी तलाशी, निराशा ही हाथ लगी। उम्र निकल जाने के बाद इसकी
उम्मीद भी समाप्त हो गई। इससे अब राष्ट्रीय खिलाड़ी रेलवे पार्सल में हमाली
का काम करता है।
गोलकीपर की भूमिका निभा चुके फुटबाल खिलाड़ी विनोद कुमार को कई कोशिश व रेल
अफसरों के आश्वासन के बाद भी नौकरी नहीं मिली। पारिवारिक स्थिति ने उसे खेल
में भी आगे नहीं बढ़ने दिया। वहीं अब वह गलियों में घूम-घूमकर सब्जी बेचने
को मजबूर है।
विनोद कुमार गोलकीपर के रूप में रेलवे और जिला फुटबाल
संघ के कई टूर्नामेंट में खेल चुका है। फुटबाल के प्रति लगाव ने स्कूल से
इस खेल से जोड़ा। फिर 1993 से उसने रेलवे की डिवीजन टीम से खेलना शुरू किया।
रेलवे
की टीम को गोलकीपर नहीं मिलता था। इस वजह से विनोद को टीम में प्राथमिकता
मिलती थी। वह 8 साल तक इस टीम के गोलकीपर बने रहे। वर्ष 1998 में स्पोर्ट्स
कोटे से जॉब के लिए अंतिम ट्रायल हुआ, लेकिन उसका चयन नहीं हो सका।
ट्रायल
लेने वालों ने बाद में विचार करने की बात कही। फिर यह सीट क्रिकेट कोटे
में चली गई। इससे वे नौकरी से वंचित रहे। इसके बाद 2004 में जोन बनने के
समय उम्र सीमा निकल जाने की वजह से नौकरी की उम्मीद ही खत्म हो गई। इस वजह
से परिवार को संभालने और अपनी आर्थिक कमी को दूर करने वे घूम-घूमकर सब्जी
बेचते हैं।
4 नेशनल में चयन, दो में मौका, अब कर रहा हमाली
विनोद
की तरह कभी फुटबाल के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे राकेश बुराडे की कहानी है।
उनका चयन 4 राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए हुआ। वहीं कोलकाता और दिल्ली
में सुब्रतो मुखर्जी कप में खेलने का मौका मिला।
दो राष्ट्रीय
प्रतियोगिताओं में घर की माली हालत खराब होने से नहीं जा सके। खेल की वजह
से जगह-जगह नौकरी तलाशी, निराशा ही हाथ लगी। उम्र निकल जाने के बाद इसकी
उम्मीद भी समाप्त हो गई। इससे अब राष्ट्रीय खिलाड़ी रेलवे पार्सल में हमाली
का काम करता है।
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