इंदौर, कहीं बहू का खाना-पीना और रहना अलग कर दिया, कहीं बेटी की नौकरी छुड़वा दी, कहीं महिला को मायके भिजवा दिया। यहां तक कि पत्नी ने पति को छोड़कर चली गई। अपनों के साथ इस तरह का भेदभाव उन लोगों के साथ हुआ, जिन्हें टीबी ने जकड़ लिया था। बाद में परिजन की समझाइश और उनके सोच में बदलाव के बाद बीमार व्यक्ति घरवालों का साथ पा सके।इंदौर जिले में हर साल 5 से 6 हजार टीबी मरीज सामने आ रहे हैं। सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर इन मरीजों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। अपने घर में ये बेगानी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। 30 से 35 प्रतिशत मरीजों ने भेदभाव किए जाने की बात स्वीकारी भी है। ठीक होने पर ही पहले की तरह सम्मान मिल पाता है।संस्था कोलॉबरेशन टू एलिमिनेट टीबी इंडिया की प्रोग्राम मैनेजर संगीता पाठक ने बताया ऐसे सैकड़ों केस शहर में ही सामने आए जिसमें मरीजों को अलग कर दिया गया। शहरी एरिया में 120 से अधिक कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। अधिकांश केस में परिवार के लोगों को समझाने पर उनके नजरिए में बदलाव आ रहा है।जांच-इलाज फ्री : शासन स्तर पर टीबी मरीजों के लिए कफ की जांच, एक्स रे, दवाई,अस्पताल में भर्ती से लेकर अन्य सुविधाएं निशुल्क है। यहां तक कि नियमित दवाई खिलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता भी लगातार काम कर रहे हैं।जागरूकता में है कमी
टीबी को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है। कई मरीज घर पर फालोअप लेने आने का भी मना कर खुद ही अस्पताल जांच के लिए आ जाते हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ ही परिजन को भी भेदभाव मिटाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अब यह प्रतिशत कम हो रहा है। – डॉ. विजय छजलानी, जिला टीबी अधिकारी इंदौर
सरकार कर रही मदद
अभी भी सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर मरीज को भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। शासन स्तर पर मदद के प्रयास किए जा रहे हैं। पीएम की प्राथमिकता है कि 2025 तक भारत को टीबी मुक्त किया जाए। इलाज व जांच की आधुनिक तकनीक अब उपलब्ध है। – डॉ. विजय अग्रवाल, अधीक्षक, एमआर टीबी अस्पताल
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