शिवपुरी। मृत्यु के बाद हमारी दो आंखे सात
व्यक्तियों के जीवन को रंगीन बना सकतीं हैं। इसलिए हमें नेत्रदान के लिए
आगे आकर पहल सुनिश्चित करनी चाहिए। देश की प्रख्यात नेत्र सर्जन डॉ. विनीता
रामनानी के अनुसार अधतन तकनीकी के माध्यम से नेत्रदान की प्रक्रिया महज 15
मिनिट में पूर्ण हो जाती है। चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 40वी
ई-संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. रामनानी ने बताया कि भारत में लाखों
बच्चे जन्म के साथ ही अंधत्व का दंश झेलने पर विवश है, इसलिए नेत्रदान के
प्रति लोगों में व्याप्त भ्रांतियों को दूर कर भारत से अंधत्व की त्रासदी
को हम मिटा सकते है।
डॉ. रामनानी के अनुसार, हर चार में से एक बच्चा
आज आंखों की समस्या से ग्रसित है। आमतौर पर बच्चे खुद अपनी नेत्र समस्याओं
को बताने में सक्षम नहीं होते, इसलिए अभिभावकों को नियमित रूप से
चिकित्सकों की सलाह और परीक्षण कराते रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि हमारे
समाज में चश्मे को लेकर भी गलत धारणाएं व्याप्त हैं, जिन बच्चों को चश्में
लगते है, उनके माता पिता यह कहकर चश्मा लगाने से परहेज कराते है कि इसकी
आदत पड़ जाएगी। यह बिल्कुल गलत धारणा है। हमें यह समझना चाहिए कि जैसे
बच्चों की आयु बढ़ने से उनकी शारीरिक लंबाई, जूते या कपड़े के नंबर बढ़ते है,
वैसे ही चश्मे का नबंर 18 साल की आयु तक बढ़ना स्वाभाविक है। चश्मा कमजोरी
नहीं, एक आवश्यकता है।
डॉ.
रामनानी के अनुसार, मौजूदा जीवन शैली में गैजेट्स के अतिशय उपयोग ने
बच्चों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। आनलाइन पढ़ाई और गेम्स के चलते
आने वाले 30 सालों में 50 फीसदी बच्चों की आंखे किसी न किसी गंभीर रोग से
ग्रस्त होंगी। डॉ. रामनानी के अनुसार, टीवी, कम्प्यूटर, गैजेट्स ( मोबाइल)
में से सबसे कम नुकसानदेह टीवी है और सबसे खतरनाक गैजेट्स है। मोबाइल से
निकलने वाली ब्लू इन्विसिवल रेडियेशन सीधे आंखों को क्षति पहुंचाने का काम
करता है। मोबाइल चश्में का नम्बर बढ़ाने का सबसे बड़ा कारक है। बच्चों की
आंखे तंदुरुस्त रहे, इसके लिए हमें किताबों से पढ़ाई और परंपरागत भोजन की
आदत विकसित करनी होगी।
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