3 इडियट्स’ फिल्म के फुंसुख वांगड़ू से तो आप सभी अच्छी तरह से वाकिफ होंगे. आमिर खान ने जिस किरदार को निभाकर फिल्म को नई बुलंदियां दे दी थी, वह किरदार काल्पनिक नहीं, बल्कि असली है. आमिर का ‘3 इडियट्स’ फिल्म का किरदार लद्दाख के रहने वाले इंजीनियर सोनम वांगचुक से प्रेरित था. 3 इडियट्स में आमिर खान ने इन्हीं के जीवन को फुंसुख वांगड़ू के रूप में जिया था. वांगचुक को रोलेक्स अवॉर्ड से नवाजा गया है. यह अवॉर्ड दुनियाभर से कुल 140 लागों को दिया जाना है. आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पिछड़े जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र की शिक्षा प्रणाली में सुधार का बीड़ा उठाने वाले सोनम वांगचुक स्कूलों की रटी-रटाई व्यवस्था से अलग उन छात्रों के लिए एक ऐसे स्कूल की स्थापना की है, जो पारंपरिक स्कूली शिक्षा में नाकामयाब रहे हैं. वांगचुक के स्कूल में लीक से हटकर चीजें सिखाई जाती हैं.वांगचुक प्रतिभावान बच्चों जिन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता है, उनके सपने पूरे करने का काम कर रहे हैं. वह शिक्षा और पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं. पिछले 20 वर्षों से वह दूसरों के लिए पूरी तरह समर्पित होकर का काम कर रहे हैं. उन्होंने इसके लिए एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सेकमॉल) नाम का संगठन बनाया है.वांगचुक ने 1988 में लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में शिक्षा की सुधार का जिम्मा उठाया और स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सेकमॉल) की स्थापना की. वांगचुक का दावा है कि सेकमॉल अपने तरह का इकलौता स्कूल है, जहां सबकुछ अलग तरीके से किया जाता है.वांगचुक का कहना है कि, “देश की शिक्षा प्रणाली सड़ चुकी है. स्कूल और कॉलेजों में सिर्फ नंबर पर फोकस किया जाता है और उन्हीं नंबरों के आधार पर छात्र को पास या फेल किया जाता है. ये क्या है? आप इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. कॉलेज से निकलने के बाद इनके पास रोजगार नहीं होता तो दूसरी तरफ उद्यमों के पास योग्य कर्मचारियों की कमी रहती है.” वह आगे कहते हैं, “हमारे स्कूल ने साबित किया है कि देश की शिक्षा प्रणाली में नंबरों की दौड़ में फेल हो चुके छात्र भी चमत्कार कर सकते हैं. समझदार लोगों के पास हजारों विकल्प है लेकिन नाकामयाब लोगों के पास एक भी नहीं.”यह वैकल्पिक विश्वविद्यालय सभी तरह के छात्रों के लिए खुला होगा जहां छात्र रट्टू तोता बनने की जगह प्रैक्टिकल तौर पर सीखेंगे. हालांकि, इस परियोजना के लिए राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही है. वह कहते हैं, “हमें खुद ही पूंजी जुटानी है. हम लोग 15 नवंबर से फंड रेजिंग अभियान शुरू करने जा रहे हैं. हमने सालभर पहले अपनी कृत्रिण ग्लेशियर परियोजना को प्रतिष्ठित रोलेक्स अवॉर्ड के लिए भेजा था. इस पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की ईनामी धनराशि को विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दान करूंगा और इसके साथ ही सामान्य क्राउड फंडिंग शुरू करेंगे.”वागंचुक को लद्दाख में बर्फ स्तूप कृत्रिम ग्लेशियर परियोजना के लिए हॉलीवुड में पुरस्कृत किया जा रहा है. यह कृत्रिम ग्लेशियर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है. इसे अनावश्यक पानी को इकट्टा कर बनाया गया है. हालांकि, इस तकनीक को वांगचुक 25 साल पहले अपने स्कूल में इस्तेमाल कर चुके हैं.बचपन में वांगचुक सात साल तक अपनी मां के साथ एक रिमोट लद्दाखी गांव में रहे. यहां उन्होंने कई स्थानीय भाषाएं भी सींखीं. बाद में जब उन्होंने लद्दाख में शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया तो उन्हें अहसास हुआ कि बच्चों को सवालों के जवाब पता होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी भाषा की वजह से होती है. इसके बाद उन्होंने स्थानीय भाषा में ही बच्चों की शिक्षा के लिए कवायद करनी शुरू की.जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ मिलकर उन्होंने लद्दाख के स्कूलों में पाठ्यक्रम को यहां की स्थानीय भाषा में करने का काम किया. 1994 में उन्होंने स्कूलों से बाहर कर दिए गए कुछ स्टूडेंट्स को इकट्ठा करके 1,000 युवाओं का संगठन बनाया और उनकी मदद से एक ऐसा स्कूल बनाया जो स्टूडेंट्स द्वारा ही चलाया जाता है और पूरी तरह सौर ऊर्जा से युक्त है. वांगचुक चाहते हैं कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव हो. उनका मानना है कि किताबों से ज्यादा स्टूडेंट्स को प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.रोलेक्स अवॉर्ड इससे पहले अरुण कृष्णमूर्ति को भी मिल चुका है. उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से पर्यावरण के लिए काम किया. झीलों को बचाने के लिए उनके सराहनीय काम की वजह से उन्हें यह अवॉर्ड दिया गया था. सोनम वांगचुक कई समस्याओं के बावजूद लोगों की भलाई के लिए और शिक्षा के लिए लगातार काम कर रहे हैं. वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं.







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