25 नवंबर को झारखंड बंद, बिना चर्चा के सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन से गुस्से में विपक्ष
झारखंड विधानसभा में हंगामे के बाद छोटा नागपुर टेनेंसी (सीएनटी) अधिनियम और संथाल परगना टेनेंसी (एसपीटी) अधिनियम को पारित होने से रोकने में नाकाम रहे विपक्षी दलों ने 25 नवंबर यानी शुक्रवार को बंद का ऐलान किया है.
इस बंद में मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अलावा झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी), कांग्रेस, जनता दल युनाइटेड (जद-यू) और वाम दलों का समर्थन है. यह फैसला विपक्षी दलों ने बैठक के बाद लिया.

बुधवार को रघुबर दास सरकार की ओर से भूमि और राजस्व मंत्री अमर बावरी ने विधानसभा में भूमि अधिनियम संशोधन बिल को पेश किया, जिसे चर्चा के बिना ही ध्वनि मत सेे पारित कर दिया गया. इस बिल को रोकने के लिए विपक्षी दलों ने सदन में कुर्सियां तक फेंकी.
विपक्षी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आश्वासन दिया था कि भूमि अधिनियम आदिवासी और स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाए गए हैं. इसलिए इसे सभी की सहमति से पारित किया जाए. इसके बावजदू रघुवर सरकार ने मनमानी की है.
संशोधन के खिलाफ विपक्ष की नारेबाजी के बीच छोटा नागपुर टेनेंसी (सीएनटी) अधिनियम और संथाल परगना टेनेंसी (एसपीटी) अधिनियम समेत आठ विधेयक पेश किए गए थे. आठों विधेयक चर्चा के बिना ही कुछ ही मिनटों में ध्वनिमत से पारित कर दिए गए.संशोधन के बाद कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यो के लिए प्रयोग किया जा सकेगा. राज्य सरकार भूमि को बुनियादी ढांचे, ऊर्जा क्षेत्र, सड़कों, नहरों, पंचायत भवनों और अन्य कार्यो के लिए अधिगृहित कर सकती है.
पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम नेता हेमंत सोरेन ने संशोधन की आलोचना करते हुए कहा, “संशोधन आदिवासी और मूल निवासियों के लिए मौत की सूचना के समान है. लोग उन्हें (भाजपा को) सबक सिखाएंगे.”
पूर्व मुख्यमंत्री और जेवीएम-पी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा, “राज्य सरकार को आदिवासी और स्थानीय लोगों के कल्याण से कोई लेना देना नहीं है. उद्यमियों के लिए आदिवासियों की भूमि अधिगृहित करने के लिए यह संशोधन किए गए हैं.”
मुख्यमंत्री रघुबर दास का कहना है कि संशोधन के लाभ आने वाले सालों में नजर आएंगे.
सरकार के इस फैसले के विरोध में विरोधी दलों ने 25 नवंबर को राज्यव्यापी बंद का ऐलान किया है.
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