नोट बैन को लेकर अर्थनीति से उठे तूफान का असर लोकनीति और राजनीति पर पूरी तरह से हावी है. ब्लैक एंड वाइट मनी के गेम ने पूरे देश और आम जनता की फिजा खासी टाइट कर रखी है. उम्मीदों के रुप में संजोई जमा पूंजी को लेकर आम जनता सड़कों पर बुरी तरह से हलकान है. या यूं कहें कि पूरा देश ही कतार में खड़ा है.
कालेधन पर लगाम लगाने के लिए नोट बंदी के फैसले को वैसे तो विपक्ष अच्छा कदम बता रहा है, लेकिन फिर भी इसके खिलाफ उन्होंने सड़क पर मोर्चा खोल दिया है. जिसकी वजह से इसे विपक्षी पार्टीयों की वोट अपने पाले में करने की साजिश बताया जा रहा है.
वोट के गेम से सियासी अखाड़े में भी खूब गहमागहमी है. सियासतदानों ने मीडिया के सामने आकर भाजपा पर जमकर हमला बोला है. सपा ने इसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाए तो मायावती ने फैसले को आर्थिक आपातकाल बताते हुए भाजपा पर कड़े प्रहार किए.
कांग्रेस सरीखीं देश की लगभग तमाम सियासी पार्टियों ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह मोदी सरकार का जल्दबादी में उठाया गया कदम है जिससे मध्यमवर्ग, छोटे कारोबारियों और किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
यह भी सवाल उठते रहे कि क्या विदेश में जमा 80 लाख करोड़ रुपये काला धन लाने में नाकामी को ढकने के लिए ही यह कदम उठाया गया है. बाजार में हाहाकार मचा है. देश भर में करोड़ों का कारोबार बाधित है. रोजाना 200 करोड़ का होने वाला कारोबार 20 करोड़ पर सिमट गया है.
आने वाले चुनावों के खर्च पर पड़ेगा असर
उत्तर प्रदेश उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव नजदीक है. प्रचार के लिए राजनीतिक पार्टियां खूब पैसा बहा रही हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी सरकार का ये फैसला राजनीतिक पार्टियों के चुनाव में खर्च को भी प्रभावित करेगा.
लेकिन नोटबंदी के फैसले से राजनीतिक दलों का चुनावी गणित बिगड़ा है. अगर सियासी चश्मे से पीएम के इस कदम को देखें तो 500 और 1000 के नोट गायब होता देख सियासी पार्टियों को भी खास खुशी नहीं है. क्योंकि अगले साल की शुरुआत में देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, पंजाब सरीखे राज्य इन दिनों सियासी रण में उतरने से पहले अपनी रणनीतियों को अमली जा पहना रहे हैं.
चुनाव में होता है पैसों का गलत इस्तेमाल
चुनाव में नकदी के चलन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 3 लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टियों ने जहां 1299.53 करोड़ रुपये चेक वगैरह के जरिए एकत्र किया, वहीं 1,039 करोड़ रुपये नकदी के रूप में इकट्ठा किए. असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (ADR) ने राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न के विश्लेषण में पाया कि राजनीतिक दलों ने पिछले तीन लोकसभा चुनाव के दौरान कुल 2,356 करोड़ रुपये बतौर चंदा एकत्र करने की घोषणा की थी. इसमें से 44 प्रतिशत रकम नकदी के रूप में इकट्ठा की गई थी. हालांकि राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के मुताबिक नकदी के रूप में एकत्र चंदे की रकम घोषित की, लेकिन चुनाव के दौरान पुलिस द्वारा भारी मात्रा में नकदी पकड़े जाने से ये संकेत मिलते हैं कि प्रचार अभियान के दौरान काले धन का भी इस्तेमाल किया गया. मिसाल के तौर पर साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान आयोग ने करीब 330 करोड़ रुपये की बेनामी नकदी जब्त किया था.
पैमाना यूपी विधानसभा चुनाव बनेगा
नोट वापसी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला मिडिल क्लास और व्यापारी वर्ग है, जो बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. लखनऊ सहित सभी बड़े शहरों में व्यापारियों, डॉक्टरों, नौकरी-पेशा लोगों की तादाद अच्छी है. सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर पहले से ही कोई खास उत्साह नहीं है. ‘बुरे दिनों’ के बावजूद भी शहरी वोटरों ने बीजेपी का साथ नहीं छोड़ा है. इसलिए पार्टी की सबसे बड़ी चिंता उन्हें यह समझाने की होगी कि यह फैसला कालेधन के खिलाफ कितना क्रांतिकारी कदम है. घोषणा से हर घर प्रभावित है, खासकर जो बैंकिंग के अभ्यस्त नहीं है, उनके लिए दिक्कतें ज्यादा हैं. यह तबका गांवों में ज्यादा है. विपक्ष इसे चुनावी स्टंट और कालेधन की कार्रवाई से ध्यान बंटाने की कोशिश बता रहा है. वह मुद्दा बनाएगा आम लोगों कि तो तकलीफ दी जा रही है, जबकि अडानी, अंबानी सहित तमाम बड़े पूंजीपतियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
यूपी इलेक्शन में खपना था 30 से 35 अरब का काला धन
आयकर विभाग के आंकलन के मुताबिक इस बार यूपी चुनाव में कितने रूपए खर्च होंगे और इसमें कालाधन का हिस्सा कितना होगा? एक मोटा आंकलन है कि इस चुनाव में लगभग 50 अरब रुपए का खर्च होना अनुमान था. इसमें काले धन का हिस्सा कुछ नहीं 30 से 35 अरब हो सकता था. जिसमें 15 अरब रुपए तो राजनीतिक दल औपचारिक तौर पर खर्च करते और बाकी ब्लैक मनी के तौर पर चुनाव में खपाया जाना था.
प्रति वोटर कितना खर्च
आयकर विभाग के अफसर का मानना है कि प्रति वोटर करीब 300 रुपये का खर्च कांटे की टक्कर के दौरान एक वोटर पर होता है. जो कि यूपी में होने जा रही है. जिससे काले धन की खपत का स्पष्ट अंदाजा हो सकता है. चुनाव प्रबंधन से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि चुनाव जितना कड़ा होता है उतना ही खर्चा अधिक होता है. अगले साल पंचायत चुनाव होना है। उसमें प्रति वोटर खर्च पांच सौ रुपए से अधिक पहुंच जाता है.
लोकसभा चुनाव में कहां-कहां से पकड़ा गया था काला धन
पिछले लोकसभा चुनाव में ये कवायद सबसे अधिक सख्त थी, तब प्रदेश भर में हाईवे से करोड़ों रुपये पकड़े गये. घड़े में लाखों रू पश्चिमी यूपी में आयकर टीम ने मिट्टी के घड़े से 40 लाख रुपये बरामद किए थे. यह रुपया ट्रैक्टर-ट्रॉली में ले जाया जा रहा था. दूध के डिब्बे में 14 लाख रू पश्चिमी यूपी के जिलों में दूध के डिब्बों से 14 लाख रुपये बरामद किए गए तो मिठाई के डिब्बों में सोना भरा हुआ मिला.
कार में गुप्त ठिकाना रू एक अन्य मामले में कार डिग्गी के फर्श पर पड़ी मैट के नीचे लोहे की चादर काट कर बनाया गुप्त ठिकाना दिखाई दिया. इसमें सवा करोड़ रुपये भरे थे. ऑटो में 18 लाख रू बागपत में आयकर विभाग ने ऑटो रिक्शा से 18 लाख रुपये बरामद किए. इन रुपयों का कोई रिकॉर्ड नहीं था और न कोई दस्तावेज दिखाए जा सके.
अब देखना है कि आने वाला समय इस फैसले पर क्या क्या रंग दिखाता है. मोदी ने तो ताल ठोक कर ऐलान कर दिया है विपक्ष कुछ भी कर ले वह अपना फैसला वापस नहीं लेंगे और आने वाले समय में और भी कई बड़े फैसले ले सकते हैं. आम जनता भी चाहे कितनी तकलीफ उठा रही है पर भविष्य में कुछ अच्छा होने की उम्मीद लिए फैसले के साथ खड़ी दिख रही है.
Be First to Comment